सैर करने आये थे सैर-ए-गुलशन कर चले
संभालो माली बाग़ अपना हम तो अपने घर चले
ब्रिलियंट ट्युटोरियल के कांटेक्ट क्लासेज में जमशेदपुर आया था एक शिक्षक, पुणे से, १९९९ में! केमिस्ट्री के पाठों के साथ जीवन के कई पाठ पढ़ा जाने वाला वह इंसान जाते हुए यही शेर कह गया था...! जो याद है, वह लिख दिया ऊपर... किस शायर ने कहा न ये ज्ञात है और न ही हमें है वर्तनी की तमीज़ का ही पता. हम तो बस इतना जानते हैं कि यह कह कर विदा लेने वाला वह शिक्षक हमेशा के लिए अपना हो गया... हम विद्यार्थियों को हमेशा के लिए अपना बना गया!
कितने ही नुस्खे सिखाये उसने
पीरियोडिक टेबल कंठस्त करने के, फिजिकल केमिस्ट्री के कितने सिद्धांतों को आसानी से समझाया और सबसे ज्यादा जो चीज़ सीखाई वह थी जुड़ना अपने आप से, एक दूसरे से, समाज से और राष्ट्र से!
आर्गेनिक केमिस्ट्री पढ़ाते हुए कब वो सामाजिक सिद्धांतों की व्याख्या करने लगते, पता ही नहीं चलता और सबसे बड़ा चमत्कार यह था कि सबसे अधिक इफेक्टिव उनके ही क्लासेज रहे.
होता क्या है, दो तीन दिनों के कांटेक्ट क्लासेज में नए शिक्षक के साथ ताल मेल बिठाने में ही वक़्त लग जाता है... पर यह तो ऐसा इंसान था कि आते ही सबसे यूँ जुड़ गया था मानों हम वर्षों से उसके विद्यार्थी रहे हों.
उनके फ़ोल्डर्स में बहुत सारी चिट्ठियां थीं... कुछ उन्होंने हमें दिखायीं भी, ये सब उनके समय समय पर विद्यार्थी रहे लोगों के ख़त थे. हमें होम्वर्क मिला था कि उनकी बताई गयी युक्ति से पीरियोडिक टेबल कंठस्त करेंगे और यह करने के बाद उन्हें पत्र लिखना, होम्वर्क किया, ये कन्फर्म करने के लिए किया जाने वाला उपक्रम होगा. उन्होंने तुरंत स्पष्ट किया था कि वे अपने विद्यार्थियों द्वारा लिखे हर पत्र का जवाब देते हैं...!
दो दिन बीत गए, कांटेक्ट क्लासेज की अवधि समाप्त हुई और ब्रिलियंट ट्युटोरियल का कारवां आगे बढ़ गया...!
उनके आदेशानुसार चीज़ों को कंठस्त कर हमने पत्र लिखा था उन्हें... फिर भूल गए लिखकर. कुछ ही दिनों में उनका जवाब आया, एज ही हैड प्रॉमिस्ड! एक बेहद सुन्दर अनुभूति थी उस पत्र का मिलना... फिर समय समय पर उन्हें कई पत्र लिखे हमने, सबके जवाब भी पाए. बी एच यु के दिनों में भी हॉस्टल से उनको पत्र लिखते थे, जैसे कि शिक्षक दिवस के मौके पर, और जवाब भी पाते थे... अब वो हमें यूँ संबोधित करने लगे थे... Dear Anupama Beti और मेरी कविताओं से भी उनकी पहचान हो गयी थी!
याद नहीं कब अंतिम बार लिखा था... कब अंतिम बार उनके जवाबी अंतर्देशिये पाए थे... शायद २००५ या २००६ के दौरान. फिर इधर उधर उलझ गए, घर बदल गया... देश छूट गया और वह डायरी भी जिसमें उनका पता लिखा था... डायरी होगी घर में कहीं, वापस लौटेंगे तो ढूंढेंगे पर अभी के लिए असमंजस यह है कि आधा अधूरा पता जो याद है उसतक चाहें भी तो चिट्ठी पोस्ट कैसे करें... उनका नाम तो विस्मृत हो ही नहीं सकता... पते के नाम पर जो याद है वह बस अपार्टमेंट का नाम है, शेष कुछ भी ठीक ठीक याद नहीं!
वे रिटायर्ड प्रोफ़ेसर थे ए. एफ़. एम. सी. पुणे से, उनके एक हाथ में एक छड़ी हुआ करती थी जिसके सहारे वे चलते थे और उत्साह हुआ करता था अपरीमित उनकी वाणी में!
एक और कुछ कहा था उन्होंने यूँ...
मर्तबे इश्क का दस्तूर निराला देखा
जिसने सबक याद कर लिया उसे छुट्टी नहीं मिली
शब्द व वर्तनी में सुधार की गुंजाइश हो सकती है, हमें जो याद है सो लिखा है बस...
The institution of love follows a different set of rules... here the ones who learn the lesson are captivated for life...
He explained this to a bunch of confused students, (all completely finding themselves lost in preparation of various entrance examinations), with full conviction and authority!
He further explained to us drawing a parallel to our situation... Once we follow his instructions and learn the subject his way, he guaranteed our falling in love with the subject and thus never getting out of the subject's spell.
इस तरह विस्तृत कैनवास पर चित्र खींच गया वह ट्रैवलर, अंदाज़ अलग था उसका... फिर कोई ऐसा नहीं मिला जो एक दो दिन की सीमित घंटों की कक्षा में अपने लेक्चर से यूँ छाप छोड़ गया हो कि जीवन भर के लिए वो पथ अपने हो गए...!
तो एक पत्र यहीं पर उनके लिए...
Dear Professor Uncle,
चरणस्पर्श प्रणाम!
पूर्ण विश्वास है कि आप स्वस्थ व सानंद होंगे... अपना ज्ञान और प्यार विद्यार्थी समुदाय में उसी उत्साह के साथ मुक्तहस्त लुटा रहे होंगे...! आपने ही कभी पत्र में लिखा था we should do our job well and leave all to destiny for destiny knows what is best for us...
आज जब कभी विचलित होता है मन तो आपकी यह बात ध्यान में अवश्य आती है...
With prayers for your good health and happiness,
Yours Sincerely,
Anupama
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तस्वीर: आज पता नहीं कहाँ से ये लिख गया और तस्वीर ढूंढी कोई अनुकूल तो इस तस्वीर ने रोक लिया जबकि हम बाग़ की छवि लगाना चाहते थे. ये तस्वीर
जुनिबैकेन के पास ली गयी थी यहीं स्टॉकहोम में. कोई बैठा पढ़ रहा है मुनिवत, और पास बैठी नन्हीं चिड़िया की आकृति जैसे झाँक रही हो पन्नों में.
तस्वीर का क्या है... जोड़ना चाहें तो जोड़ दें लिखित भावों से या फिर अलहदा भी रहे वो तो कोई बात नहीं... !आखिर कहाँ सब बातें पर्फेक्ट्ली जुड़ पातीं हैं आपस में... केयोस के कनफ्यूज़न में भी संगीत होता है... बस सुनने की क्षमता होनी चाहिए!