बुधवार, 30 मई 2012

ये लौटना कितना सुखद होगा न!


वो बचपन की यादों में छूट गयी थी पर यहाँ स्टॉक होम आकर उससे जैसे एक नयी पहचान हो गयी... अब पेंसिल उसी तरह मेरे साथ है जैसे उन दिनों हुआ करती होगी जब लिखना शुरू किया होगा.
थर्ड स्टैंडर्ड तक पेंसिल से लिखने के बाद फाउनटेन पेन पकड़ने की ख़ुशी याद है... कलम में स्याही भरना मानों जीवन में उमंग भरने सा था उन दिनों... कलम पकड़ने का एहसास बड़े हो जाने का एहसास था... तब हमारे स्कूल में डॉट पेन से लिखना वर्जित था हमारे लिए, तीन चार साल इंक पेन से लिखने के बाद ही डॉट पेन से लिखने की अनुमति मिलती थी... ये एक नियम सा था; कहते हैं, इंक पेन से लिखने पर लिखावट अच्छी बनती है और एक बार अभ्यास हो जाए तब डॉट पेन से लिखना शुरू किया जा सकता है... यही कुछ उद्देश्य रहा होगा! जीवन का फलसफा भी तो कुछ ऐसा ही है, पहले लड़खड़ाते हुए चलना सीख लो फिर तो दौड़ने को लम्बी राह है... शुरू शुरू में इंक पेन से लिखना भी तो लड़खड़ाने जैसा ही था... कभी इंक लिक कर जाती थी, कभी लिखने का सलीका न होने के कारण निब से कागज़ ही फट जाते थे, फिर धीरे धीरे सब सामान्य हो गया... वैसे ही जैसे अब गिरने के बाद संभल जाना ज़िन्दगी सीखा देती है!
अब ठीक ठीक याद नहीं कि कब इंक पेन से डॉट पेन पर आये, संभवतः सेवेंथ या ऐट्थ स्टैंडर्ड रहा होगा...; और फिर उसके बाद फाउनटेन पेन धीरे धीरे दूर होता गया, डॉट पेन की गति साथ हो गयी...! बस कभी कभी शौक से लिखने के लिए फाउनटेन पेन साथ रहा, कई रंगों की स्याही से परिपूर्ण...; इम्तहानों की भागमभाग में डॉट पेन ने हमेशा साथ निभाया... लम्बा सफ़र तय किया इसके साथ... बहुत सारी कलम संभाल कर रखी है, कई यादें हैं उनके साथ जुडी हुईं...!
फिर समय बीता, वक़्त ने करवट ली और पहुँच गए अपने देश से इतनी दूर... यहाँ पढ़ाई शुरू की तो देखा कि सामान्यतः सभी पेंसिल से ही लिखते हैं... शिक्षक भी, विद्यार्थी भी...! शुरू शुरू में अटपटा लगता था... पर अब दो वर्षों में सारा लिखना पढ़ना इस तरह हुआ पेंसिल से कि अब लगता है कलम से लिखा ही नहीं हो कभी...; पेंसिल से लिखने का अपना ही मज़ा है, कितना आसान है हर गलती को इरेज़ कर देना पेंसिल से लिखते हुए...! मेरे पास कई तरह की पेंसिल है अब... जैसे कभी कई तरह की कलम हुआ करती थी.
पेंसिल की बात करते हुए लौटने की बात से जुड़ी कई भावनाएं उमड़ घुमड़ रही हैं... देख रहे हैं कि एक बादल है जो लौट रहा है वापस समुद्र में, लहरें भी फिर फिर लौट रही हैं सागर में, ये सामान्य रूप से चल रहा है... चलता है, फिर क्यूँ नहीं लौट पाते हम? आगे की राह क्यूँ यूँ उलझाये रखती है कि हम उस पुल के उपकार को अक्सर भूल जाते हैं जिसे पार कर आगे आये हैं...!
वापस लौटना मुमकिन नहीं होता... जीवन आगे जो भागता रहता है, पर यही जीवन कभी कभी कुछ खोयी हुई चीज़ें लौटा भी देता है..., खोये हुए पल, खोयी हुई खुशियाँ, खोयी हुई जडें, खोया हुआ सुकून, खो चूका भोलापन, और कभी-कभी खो चुकी यादें भी! जीवन है न... जाने क्या क्या आश्चर्य छुपाये है हर पल अपने भीतर...! गुल्लक में जमा हो रही उम्मीदों का पूरा पूरा हिसाब देती है ज़िन्दगी... कहाँ का बिछड़ा हुआ कोई कहाँ कैसे मिल जाएगा ये तो अज्ञात है... जब तक घटित न हो तब तक असंभव सा ही जान पड़ता है... पर ज़िन्दगी ही कहती है न कि असंभव कुछ भी नहीं...!
अपने छोटे से वृत्त में हर आश्चर्य, हर सम्भावना, हर मिठास को साथ लेकर चलता है जीवन...., समय और स्थिति के अनुरूप प्रकट हो चकित कर देती है पूर्ण सौन्दर्य के साथ काँटों के बीच खिली एक कली...!
पेंसिल का लौटना सुखद है... यूँ ही कभी हम सबका भी लौटना हो वहाँ, जहां से हम हो कर आ चुके हैं कोई एक बीज रोप कर, जिससे लौट कर देख सकें बीज का सुखद अंकुरण...! ये लौटना कितना सुखद होगा... नयी उर्जा से परिपूर्ण कर देगा फिर आने वाली राह में हम दुगुने उत्साह के साथ शुभ संकल्पों के बीज बोते हुए बढ़ेंगे और इस तरह एक दिन धरती स्वर्ग सी हो जायेगी... हरियाली की चादर ओढ़ कर गाएगी... उन दिनों में लौट जायेगी जब उसने नया नया जन्म लिया होगा, बेहद सुन्दर और सहज रही होगी... ये लौटना कितना सुखद होगा न धरती के लिए... हमारे लिए... हम सबके लिए!

10 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन का फलसफा भी तो कुछ ऐसा ही है, पहले लड़खड़ाते हुए चलना सीख लो फिर तो दौड़ने को लम्बी राह है... !
    आगे की राह क्यूँ यूँ उलझाये रखती है कि हम उस पुल के उपकार को अक्सर भूल जाते हैं जिसे पार कर आगे आये हैं...!
    अपने छोटे से वृत्त में हर आश्चर्य, हर सम्भावना, हर मिठास को साथ लेकर चलता है जीवन...!
    अपने अनुभव की अभिव्यक्ति बहुत अच्छी है .... !!

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  2. सुन्दर गद्य! प्रवाह पूर्ण और कविता-सी लयात्मकता से पूर्ण. सीधे-सादे शब्द पर अपनी अभिव्यक्ति में सम्पूर्ण. पेन्सिल के लौटने का प्रतीक लेकर ज़िंदगी में कई चीज़ों के लौटने की सम्भावनाओं का भरपूर आशावाद लिए तुम्हारा ये आलेख पढने में ही अच्छा नहीं, पढाने के लिए भी अच्छा है कि देखो सरल-सहज कथन के ज़रिये कैसे बड़ी बातें व्यक्त की जा सकती हैं. ऐसे ही लिखती और बांटती रहो.

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  3. बहुत सार्थक और भावमयी आलेख....

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  4. यही है जीवन कब क्या ले ले और कब क्या लौटा दे पता नही चलता।

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  5. लगा पढते चले जाएँ.......................
    आप लिखती क्यूँ नहीं चली गयीं?????????

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  6. अति सुन्दर आलेख...
    अच्छा लगता है जब हमारा आज बचपन की यादों से जुड जता है...
    ऐसा लगता है कि लौट आए हैं बरसों पुराने दिन...
    और भी अच्छा लगता है जब स्कूल के दिनों की पेन्सिल आज की दिनचर्या का अंग बन जाए...
    लेख पढकर आपके मन की भावनाएं समझ में आ जाती हैं...
    लिखती रहिए...

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  7. भावनाओं मे डूबा ...
    सुखद आलेख ....

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  8. Just Beautiful!!fountain pen, ball pen, pencil...Waah...kya yaad dila diya!! :) :)

    Aaj subah anusheel aur neela ambar par waqt bitana bahut achha laga mujhe!

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  9. पता नहीं क्यों इसको बार बार पढ़ा है मैंने ?

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  10. हम भूलते तो नही बस कुछ विवश से रहते हैं । सुंदर आलेख ।

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