गुरुवार, 8 मार्च 2012

रंग और रहस्य प्रकृति के... प्रकृति ही जाने!


आज कविताओं से गुज़रते हुए जिस कविता को अनुवाद के लिए चुना वह याद दिला गया किसी की... जो अब इस दुनिया में नहीं हैं...
स्वीडिश कवि वर्नर वोन हेइदेन्स्तम की एक कविता वसंत ऋतु पर यूँ कहती है...

अब यह दुखद है मर चुके लोगों के लिए,
वे वसंत ऋतु का आनंद लेने में सक्षम नहीं हैं
और सूर्य की रौशनी महसूस नहीं कर सकते
प्रकाशयुक्त सुन्दर पुष्पों के बीच बैठ कर.
लेकिन शायद मृत आत्माएं फुसफुसाती हैं
शब्द, फूल और वायलिन के माध्यम से,
जो कोई जीवित प्राणी नहीं समझता.
मृतात्माएं हमारी तुलना में अधिक जानती हैं.
और शायद वे वैसा ही करेंगी, जैसा कि सूरज करता है,
पुनः एक हर्ष के साथ, जो हमसे कहीं अधिक गहरी है
शाम की छाया के संग विचार की उस सीमा तक विचर जाता है
जहां रहस्य ही रहस्य है,
जो केवल कब्र को ज्ञात है.

कविता का अनुवाद कर बार बार इसे पढ़ते हुए बड़े पिताजी स्मरण हो आ रहे हैं... ये होली का मौसम है न और यही उनकी विदाई की घड़ी भी थी इस दुनिया से!
होली ढ़ेर सारे रंग ले कर आती है... ढ़ेर सारी मस्ती लेकर आती है... ढ़ेर सारे पकवान ले कर आती है... हमारे यहाँ भी आती थी एक वक़्त... लेकिन एक ऐसी भी पूर्णिमा थी जब हमारे यहाँ मृत्यु सन्नाटे लेकर आई थी... उधर होलिकादहन हो रहा था और इधर मेरे बड़े पिताजी के प्राण पखेरू उड़ रहे थे... होली का समय था... खबर सुनते ही हमलोग गाँव के लिए तुरंत निकल भी नहीं पाए, दो दिन के बाद यात्रा संभव हो पायी... वह समय कितना कठिन था यह सोच कर आज भी सिहर जाते हैं... हमारी होली कब रंगों से दूर हो गयी हमें पता भी नहीं चला...! पापा की चिंता स्वाभाविक थी... वे बड़े पिताजी के न रहने पर अकेले जो हो गए थे...! आज बारह वर्ष हो गए लेकिन लगता है जैसे कल की ही बात हो...!

तीन वर्ष पूर्व मेरी शादी हुई... मम्मी और पापा होली के लिए ये कहना कभी नहीं भूलते कि- 'अब तुम्हारा कुल खानदान बदल गया... होली विधि विधान से मनाया करो...', लेकिन यूँ बदलता है क्या भावों का संसार! 
खैर कभी मौका ही नहीं लगा ये विधि विधान पालने का... यहाँ स्टॉक होम में रंग गुलाल कहाँ मिलने वाले हैं जो प्रभु के चरणों में अर्पित करके होली खेलें... सो ये रंग अबीर तो दूर ही हैं हमसे अब भी... और जहां तक पकवानों का सवाल है तो उनके लिए किसी विशेष उत्सव का इंतज़ार थोड़े ही न करते हैं हम, जब मन किया बना लिया... होली में भी बनायेंगे... हमारे स्वामी सुशील जी को घर की कमी महसूस नहीं होने देंगे...!

रंग ही तो है... दुःख का हो, सुख का हो, उदासी का हो, प्रेम का हो, विदाई का हो, आगमन का हो या फिर शाश्वत आत्मा की उपस्थिति का... अगर रंग ही होली है तो होली तो हर दिवस है!
चमकते हुए रंगों का त्योहार आप सभी को मुबारक हो...!

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव युक्त अनुवाद के लिए बधाई ......................और ............... , लेकिन यूँ बदलता है क्या भावों का संसार! ............................ रंग ही तो है... दुःख का हो, सुख का हो, उदासी का हो, प्रेम का हो, विदाई का हो, आगमन का हो या फिर शाश्वत आत्मा की उपस्थिति का... अगर रंग ही होली है तो होली तो हर दिवस है!.....................इस भाव अभिव्यक्ति की प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द कम पड़ रहे है ,.

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  2. तीन वर्ष पूर्व मेरी शादी हुई... मम्मी और पापा होली के लिए ये कहना कभी नहीं भूलते कि- 'अब तुम्हारा कुल खानदान बदल गया... होली विधि विधान से मनाया करो...', लेकिन यूँ बदलता है क्या भावों का संसार! touchy

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  3. इस पोस्ट पे कुछ भी कहना मेरे लिए कठिन है..भावुक कर गयी ये पोस्ट!!

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