तीन बज रहे हैं... सुबह हो रही है... एक ओर हलकी सी लाली छाई हुई है... दूसरी ओर चाँद भी पूर्ण वैभव के साथ खिला हुआ है...! इस मौसम में इस वक़्त जगे हुए हों, ऐसा हुए बहुत समय बीता... आज जाने क्यूँ नींद खुल गयी है और अब सोने की इच्छा नहीं है. गर्मियों में यहाँ रात अँधेरी होती ही नहीं... कुछ एक घंटे छोड़ दें तो समझो इन दिनों दिन ही दिन है स्टॉकहोम में.
अम्बर का नित परिवर्तित होता रंग... उसपर हो रही चित्रकारी... देखते हुए... खुशी और आंसू के बीच झूलते हुए... जगा जा सकता है कुछ एक रातें यूँ ही! बहुत समय तक नहीं बचेगा ये सब... अब मौसम बदलने ही वाला है... अगस्त की दस्तक के साथ छुट्टियाँ भी समाप्त और ये उजाले का मौसम भी तो धीरे धीरे लुप्त होने वाला ही है. फिर वही बर्फीली सुबहें... निराश निर्जन से समुद्री तट... और ढेर सारा अन्धकार. तब प्रतीत होता है जैसे प्रकृति सारे रंग छुपा कर श्वेत श्याम रंग के संयोजन से अपना चमत्कार रचने में निमग्न रहती है…!
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आज यह लिखते हुए कभी इसी मौसम में लिखी गयी एक कविता की पंक्तियाँ स्मरण हो आ रही हैं. पन्ने पलटे तो मिली कविता और छूट रहा कोई किनारा भी हाथ आया…! रहने वाला नहीं है कुछ भी यथावत… हर एक क्षण परिवर्तन की लहर से होकर नये क्षण में बदल रहा है… हर क्षण हम बदल रहे हैं… नष्ट हो रहे हैं… हमेशा नहीं रहने वाला सामर्थ्य ही… न हम ही…
इसलिए
कल के लिए ज़रूरी है,
आँखों में ही सही
आज कुछ रौशनी बसाई जाए!
आज
अनुकूल मौसम में,
कल के लिए
कुछ कलियाँ उगाई जाए!!
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आज लिख पा रहे हैं, लिख लें… कुछ एक 'कविताओं की कहानी' उतर आये पन्नों पर…! क्या पता पलक झपकते ही फिर कब लिखने का मौसम बीत जाए…! पंछी बोल रहे हैं… उनकी आवाज़ कहीं से आकर खिड़की पर बैठ गयी सी लगती है…! जीवन अपनी गति से चल रहा है…! रूठी कलम कुछ कुछ मान सी गयी है… कि कभी कभी ज़रूरी होता है शब्दों के लिए भी लिख जाना; बनना जो है उन्हें संबल… भविष्य में… किसी हताश पल के लिए, संजोना है उन्हें प्रकाश बीते कल का… आने वाले कल के लिए!
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तस्वीर: पहले ही कभी की ली हुई है… अम्बर अभी भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है, हो सकता है कुछ एक रंग छूट गए हों तस्वीर में… पर है आज का अम्बर भी ऐसा ही इसलिए यही तस्वीर! आज की तस्वीर लगायें भी तो क्या हू-बहू उतर पायेगा अम्बर का वास्तविक स्वरुप तस्वीर में…? शायद नहीं! आखिर कहाँ संभव है दृश्य को उसकी समग्रता में कैद कर पाना… ये कुछ मन की आँखों में ही बसाया जा सकता है, वहीँ संजोया जा सकता है… इन सामान्य सी प्रतीत होने वाली विशिष्ट अनुभूतियों को मन के धरातल पर ही जिया जा सकता है!
मन की अनुभूतियों को शब्द मिलते हुये, प्रकृति सा सुन्दर संयोजन, श्वेत श्याम का।
जवाब देंहटाएंएक ही पंक्ति में लिखे हुए का सटीक निचोड़ लिख जाते हैं आप!
हटाएंसभी संग्रहणीय शब्दशीशों के लिए आपका हार्दिक आभार!
बड़ी मुद्दतों बाद दिल्ली का मौसम खुशगवार है इन दिनों....तुम्हें पढ़ते पढ़ते ऐसा लगता है ....मेरे ही शब्द हैं ...मेरे ही भाव हैं ....नाम भी मेरा है ....हँसोगी वैसे ...
जवाब देंहटाएंपंछी बोल रहे हैं… उनकी आवाज़ कहीं से आकर खिड़की पर बैठ गयी सी लगती है…! जीवन अपनी गति से चल रहा है…! रूठी कलम कुछ कुछ मान सी गयी है…
सच में घर के बरामदे में बैठ कर ये पोस्ट पढ़ रही हूँ ....यही पढ़ते पढ़ते... अभी अभी एक सुंदर सी चिड़िया काँच के दरवाजे पर दस्तक दे गई ....
तभी शायद तुमको मिस कर रही थी ....सतत लिखती रहो ....शुभकामनायें ....!!
कैसे कैसे जुड़ जाते हैं न तार..., ऐसे ही तो होता है भावो का आकाश!
हटाएंआप ही के शब्द हैं... बस मेरे यहाँ उतर आये भाव बन कर:)
"क्या पता पलक झपकते ही फिर कब लिखने का मौसम बीत जाए…!"
जवाब देंहटाएंलिखने का मौसम कभी न बीते और आपकी सदाबहार कलम यूं ही चलती रहे।
सादर
धन्यवाद, यशवंत जी!
हटाएंखुशी और आंसू के बीच झूलते हुए... जगा जा सकता है कुछ एक रातें यूँ ही!....
जवाब देंहटाएं.............
बेहद सहज भाव से लिखा गया नीला अम्बर.....कितना अप्रतिम ..कितना अनंत ....
बहुत सुन्दर . अनुभूतियों को शब्द दे दिया जैसे , लिखते रहिये ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएंprernadayak lekhan....aapki ye panktiyan umang paida karti hai
जवाब देंहटाएंआज लिख पा रहे हैं, लिख लें… क्या पता पलक झपकते ही फिर कब लिखने का मौसम बीत जाए
behtreen rachna...
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