रविवार, 8 सितंबर 2013

कोहरा!

कोहरा बहुत ज्यादा है… कुछ नहीं दिख रहा… मेरी  खिड़की से जो हरियाली दिखती है, जो आसमान पर उगते सूरज द्वारा की गयी चित्रकारी दिखती है वो सब गायब… बस है तो कोहरा. ये बर्फ गिरने के मौसम वाला धुंधलापन नहीं है… न ही मुसलाधार बारिश में जो कुछ न देख पाने की स्थिति पैदा होती है, वह ही है.… यह कुछ और है, कोई और ही मौसम है, कोई और ही खेल है विधाता का! 
कोहरा घना है, छंट जाएगा ऐसा दीखता तो नहीं पर छंट जाने की सम्भावना दिख जाती है कोहरे के बीच से ही… हरे पेड़ नहीं दिख रहे पर सामने ही चर्च से सटे जो खम्भा खड़ा है न इंटों का, वह झलक रहा है. पहले तो कभी यूँ नहीं दिखी यह दिवार, आज कोहरे ने सबकुछ छुपा कर न दिखने वाली कोई चीज़ दिखा दी है. 
मन के कोहरे से झांकती एक ज्योत जैसे हम तक पहुँचने का प्रयास कर रही हो. कितना भी प्रयास कर ले ज्योत, हम कितनी भी मिन्नतें कर लें पर रौशनी तक का सफ़र तो खुद ही तय करना होता है. ज्योत तक खुद ही बढ़ना होता है.
***
अब कुछ एक घंटे बीत चुके है, कोहरा छंट चुका है, मेरी खिड़की से दृश्यमान मंज़र फिर से दिखने लगे हैं और देख रहे हैं कि खम्भे की ओर से भी मेरा ध्यान हट चुका है.… 
बस इतनी प्रार्थना करते हैं चुपचाप कि ये खम्भा तो वैसा ज़रूरी नहीं था ध्यान में न रहे कोई बात नहीं, पर जब मन का कोहरा छंटे तो कोहरे में दिख रही ज्योति विस्मृत न हो जाए हमसे!
***
तस्वीरें: ये खिड़की से दिखता कोहरा और उसका छंटना…
मन के कोहरे की कोई तस्वीर नहीं होती, ये हम सबके भीतर होता है… और हम सबकी ज्योत भी जुदा जुदा और केवल अपनी होती है, सो उन कोहरों की तसवीरें आप स्वयं तलाशें…  तराशें! 

22 टिप्‍पणियां:

  1. कोहरा भी अपने आप में एक दृश्य है, यदि मन में कोई और दृश्य देखने का पूर्वाग्रह न हो।

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  2. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
    सार्थक लेखन

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  3. कोहरे को प्रतीक बनाकर बहुत सुन्दर पोस्ट लिखा आपने...

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  4. कोहरे के प्रतीक के साथ सुन्दर आलेख.

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  5. कोहरा कितना भी घना हो ज्योत का तेज उसे छंटने पर मजबूर कर ही देता है। सुंदर चित्रों के सात सुंदर लेख।

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  6. देश में भी लगता है कोहरा छ गया है .... लोग एक दुसरे को मारने मरने पर उतारू हो रहे है ...

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  7. अपनी ज्योत तक तो हमें खुद पहुंचना पड़ेगा।
    वाह! क्या गहरा दर्शन है. अप्प दीपो भव।

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  8. Its nice. The metaphorical representation of fog was marvelous. However,don't you think you did injustice to this concept by making writing a prose and not verse? Just my two cents. :)

    Have a good one!
    Sagar

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