गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

बस कुछ एक बूँद स्नेह की बारिश और आशा की किरणें!


जब हम बहुत उदास होते हैं, तो रोते तो हैं ही पर अक्सर ऐसा भी होता है कि उदासी की एक सीमा का अतिक्रमण होने के बाद केवल आंसू पर्याप्त नहीं होते... तब और भी कुछ ऐसी अदृश्य शक्ति चाहिए होती है जो निराशा के घोर अन्धकार में किरण बन सके और जीने की कोशिश ज़ारी रह पाए.
हमें याद है पढ़ाई के दौरान जब बनारस में थे, तो बहुत सारा समय बीतता था मंदिर में... अब वो सेंट्रल लाईब्रेरी हो, उसके बगल में स्थित विश्वनाथ मंदिर हो, संकटमोचन हो या फिर तुलसी मानस मंदिर. सेंट्रल लाईब्रेरी को भी मंदिर ही मानते थे हम, सबसे अधिक समय भी यहीं बीता! संकटमोचन में भीड़ बहुत रहती थी... हमेशा भक्तों का ताँता लगा रहता था, मंगलवार को तो विशेष रूप से, लेकिन हमें याद है उस भीड़ में भी एक एकांत हमें हमेशा मिला वहां, जहां बैठ कर कितने ही पाठ किये... कितने ही मौन आंसू रोये. तुलसी मानस मंदिर की बात ही अलग थी... वहाँ जाते थे तो घूम घूम कर दीवारों को पढ़ते रहते थे, सम्पूर्ण रामचरित मानस मंदिर की दीवारों पर अंकित जो है. विश्वनाथ मंदिर के साथ तो कितना कुछ जुड़ा है... विस्तार से लिखेंगे कभी स्मृति के गलियारे में झांकते हुए. उदास होने पर जाने को कई जगह ढूढ़ रखा था हमने वहां, ऐसे कई स्तम्भ थे जिनसे टिक कर बैठ रोया जा सकता था... तभी तो तमाम परेशानियों के बावजूद इतने समय तक हम रह पाए वहाँ.
यहाँ स्टॉक होम में एक स्थान है जहां ऐसी मनोदशा में अक्सर पाँव चल पड़ते हैं... बिब्लिओतेक (लाईब्रेरी)! ढ़ेर सारी किताबों के बीच घूमते हुए उदासी को भुला देने का उपक्रम चलता रहता है और बहुत सारी किताबें चुन कर ले आते हैं..., ये जानते हुए भी कि समयाभाव के कारण सब पढ़ नहीं पायेंगे! ये चलता रहता है और ऐसी कई किताबें हैं जो उठा लाये और बिना पढ़े लौटा भी आये नियत दिन पर... लेकिन ऐसी भी कई किताबें हैं जिन्हें पढ़ा और खूब पढ़ा. फिर, ये सोच कर अपनी उदासी का आभार भी माना कि अगर वह न होती तो उन किताबों से भी परिचय नहीं हुआ होता. ऐसी ही किसी उदास शाम को स्वीडिश कविताओं की किताब मेरे हाथ लगी... और हमने ये सोच कर उनका अनुवाद आरम्भ किया कि इस तरह इस भाषा को पढ़ते हुए इस भाषा की कविताओं से परिचित होना और उन्हें अपनी भाषा में संकलित कर लेना बड़ा बढ़िया रहेगा...; सचमुच ये एक साझे क्षितिज पर खिलने वाले बाल अरुण की लालिमा थी जिसने हमें प्रेरित ही नहीं बल्कि भावविभोर भी किया...!
आज मित्र शायक आलोक के विचार इन अनुदित कविताओं के विषय में पढ़कर सचमुच चमत्कृत हुए... उनके नोट को सहेज लेने का मोह बिसार नहीं पा रहे, इसलिए यहाँ इसे सुरक्षित रख ले रहे हैं अपने लिए:) भविष्य में किसी निराश क्षण में ये शब्द गति देंगे मेरे क़दमों को...

Shayak's note

"एक मोड़ आएगा ऐसा/जब ज़िन्दगी अलविदा कहेगी/पर उसके पहले कटिबद्ध है वह/क्षण दर क्षण साथ रहेगी (अनुपमा पाठक) ....
अनुपमा की अपनी एक दुनिया है...एक ऐसी दुनिया जहाँ जहाँ दो अलग अलग दुनिया सिमट कर एक हो जाती है ....एक पदचिन्ह उसका पीछा करती है दूसरी उसके आगे आगे चलती है ...स्वीडन में रहने वाली अनुपमा जब अपनी पसंदीदा स्वीडिश कविताओं को बुदबुदाती है तो अर्थ एक नया आकार ग्रहण कर लेता है और वहीँ दो दुनिया का एक साझा क्षितिज उभर कर अपना अस्तित्व ग्रहण करता है ..क्षितिज के उसी चिर परिचित खूंटे से अपनी अनुभूतियों को शब्दों की रस्सी से बाँध फिर अनुपमा एक नया अहसास बुन देती हैं... (शायक आलोक )
(अनुवाद: अनुपमा पाठक)
हेनरी पर्लैंड की एक और कविता
कल
जब मैं घर गया
अँधेरी सड़क से रात में,
चमका आसमान से
शब्द
जिसे मैंने बहुत पहले ही जला दिया था.
---------
क्या अब मुझे आसमान भी जला देना चाहिए?
बेन्ग्त अन्देर्बेरी की एक कविता
जून के महीने में होना चाहता हूँ
हल्के भूरे रंग के पंखों वाला भारव्दाज़ पक्षी,
देवदार वृक्ष अन्धकार के आगमन पर,
त्याग देना चाहता हूँ अपनी गति,
बन जाना चाहता हूँ छछूंदर
और दुनिया के अंधकारपूर्ण समय में
आराम करना चाहता हूँ , जंगली पक्षियों के झुंड की तरह,
जीवन के बाहर
धरती के तल में अपने सुनहरे रेतीले प्रवास पर.
बिर्गिता रुदेस्कोग की एक कविता
लक्ष्य तक पहुँचने के लिए
अक्सर मुझे यात्रा करनी चाहिए
पीछे प्रारंभिक बिंदु तक
और हर बार अंततः आगे पहुंचकर
हमेशा वापस सोचना चाहिए
बरब्रो लिन्द्ग्रें की एक कविता
एक न एक दिन हम सब मर जायेंगे
तुम और मैं
सभी कमज़ोर इंसान मर जायेंगे
और सभी जानवर
और सभी पेड़ मर जायेंगे
और धरा पर खिले फूल भी
लेकिन
एक ही बार में नहीं
बल्कि कभी कभार अलग अलग समय पर
ताकि उसपर शायद ही ध्यान जाए!
मार्गारेता लिथें की एक कविता
रेल मुड़ती है
अचानक दिखता है मुझे
मेरा निकट भविष्य
तिरछे झांकता हुआ पीछे से. "
ये सब लिखने के लिए शायक ने मेरी कवितायेँ पढ़ीं, अनुवाद पढ़े और अपना स्नेह दे कर क्षितिज ही नहीं वह धरातल भी आलोकित कर दिया जहां हम फिलहाल खड़े हैं अभी. बस कुछ एक संदेशों का परिचय और यह आत्मीयता! धन्यवाद शायक:)
मनोज पटेल जी का मार्गदर्शन भी मिला और यह कोना (http://svenskpoesianusheel.blogspot.com/)कुछ कुछ सज गया जैसा उसे होना चाहिए शायद, मॉलिन डालस्ट्रोम (मेरी शिक्षिका) की प्रेरणा भी बहुत सहायक रही इस कार्य को आरम्भ करने में...! इन महत श्रेयों के लिए शब्दों में आभार कैसे व्यक्त किया जाता है... यह हमें ठीक से नहीं आता.
कहते हैं, प्रारंभ हो जाए किसी कार्य का तो दिशा मिलती जाती है... दिशा मिलती जाए और निरंतरता बनी रहे. और क्या चाहिए नीले अम्बर से हमें- बस कुछ एक बूँद स्नेह की बारिश और आशा की किरणें!

4 टिप्‍पणियां:

  1. अभी फिलवक्त मेरी इस पसंदीदा रायटर के लिए मेरी ढेर सारी मुस्कुराहटें हैं... :-) अच्छा लगा तुम्हें पढना...तुम्हारे शब्दों से गुजरना...बहुत आभार... और शुभकामनाएं मेरी कि तुम्हारा शब्दों का यह सफ़र यूँही नई मंजिलें तय करे... !! मेरा स्नेह गारंटीड !! :-)

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