बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

नीला अम्बर...!




नीला अम्बर...! अम्बर तो नीला ही होता है, इसमें अम्बर को नीला क्यूँ लिखना... और ये नया कोना ही क्यूँ बनाना जिसे नीला अम्बर कहा जाए... इसी प्रश्न से आरम्भ किया जाए. प्रश्नों के उत्तर तलाशते हुए ही तो कितने तहों में सुलझ जाती है उलझनें और सब कुछ करीने से सज जाता है.
तो, शुरुआत करते हैं अम्बर को नीला कहने से... नीला इसलिए कि अम्बर के कई रंग होते हैं, कभी वह बादलों से भरा काला भी तो होता है और कभी मन के भाव के अनुसार कोई भी रंग लिए हुए हो सकता है... नीला इसलिए कह रहे हैं क्यूंकि शायद नीला ही उसका असल रंग है... सृष्टि भी तो नीले रंग का ही विस्तार है न.
अब दूसरा प्रश्न- ये नीला अम्बर क्यूँ? तो, ये इसलिए कि जो कुछ भी लिखेंगे यहाँ वह येन-केन-प्रकारेन नीले अम्बर के नीचे ही घटित हुआ होगा... और नीला अम्बर हर उस एहसास का साक्षी होगा जो भीतर घर किये हुए है... हंसाते रुलाते संग चल रहा है! अब वह मेरा अपना जमशेदपुर हो, वहां से जुड़ी बातें हों, बनारस हो... जहां ६ वर्षों तक रहना हुआ, या फिर अब यहाँ स्टॉक होम हो, जहां २ वर्षों से हैं- सब जगहों में एक बात कॉमन है और वह यह कि सब जगहों से दीखने वाला नीला अम्बर एक ही है.
एक रोज़ यूँ ही अनुशील पर लिखना आरम्भ किया था... कई भूली बिसरी कवितायेँ सहेजीं, लिखते भी जा रहे हैं, जो जो लेखनी लिखती जा रही है; आज सोचा इन कविताओं से जुड़ी कहानियां भी अपने लिए लिख रखी जाएँ... तो नीले अम्बर ने हमसे कहा- 'आओ लिखो यहाँ... जो मन में आये सो, मैं हूँ तुम्हें सहेजने की खातिर ', इतना सुनना था कि उद्धत हो गयी कलम और कागजों से निकल कर कुछ सहज ही यहाँ अंकित होने लगा. हमने भी बीच में आना उचित नहीं समझा... अब ये है- हम और हमारा नीला अम्बर- अम्बर, जो कभी बरसेगा भी... कभी तरसेगा भी... और कभी टकटकी लगाए शून्य से शून्य को निहारेगा भी!

3 टिप्‍पणियां:

  1. कल 13/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. और हमें इंतज़ार रहेगा उन अहसासों का जो उस नीले अम्बर तले घटे और आज भी जीवित हैं ...उकेरे जाने के लिए....!

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  3. अम्बर, जो कभी बरसेगा भी... कभी तरसेगा भी... और कभी टकटकी लगाए शून्य से शून्य को निहारेगा भी!...सुन्दर!!!

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