रविवार, 26 फ़रवरी 2012

आंसू उकेरते हुए...


जीवन की आपाधापी में जीवन बिना जिए ही बीत जाता है... ये कैसे होता है कि मुट्ठी बांधते रह जाते हैं और रेत सी फिसल जाती है हाथों से समस्त जिए अनजिए पलों की दास्तान. लिखना होता होगा सहेजना पर इस लिखने की अनिवार्यता के पीछे जो दर्द होता है वह तो फिर भी अनचीन्हा ही रह जाता है... शब्द एक मात्र माध्यम हैं अभिव्यक्ति के पर यह माध्यम कभी कभी बहुत अपर्याप्त भी होता है, है न?
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मृत्यु की अनिवार्यता जीवन का ही एक पहलू है, तभी तो श्मशान से लौटते हुए भी जीवन की किलकारियां झूठी नहीं लगतीं... देखो, कहीं जीवन और मृत्यु किसी अनजान क्षितिज पर एकाकार तो नहीं हो गए?
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बहुत धुंधली सी एक स्मृति... और उनके चले जाने के बाद और गहराती हुई क्यूंकि वही एक स्मृति उस व्यक्तित्व की एक मात्र पहचान थी मेरे लिए... बुआ, मुक्त हो गयीं न आप? ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे!
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बहुत कम अवधि हेतु होता है यहाँ आना... मिलजुल लेना चाहिए समय रहते सब अपनों से... बना लेना चाहिए अपना सभी बेगानों को... जाने से पहले इतना तो कर ही लेना चाहिए: शेष कुछ भी नहीं रह जाता.
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किसी की विदाई की ख़बर से रोता तो है दिल... दिल जानता है कि एक दिन हमेशा के लिए हमें भी विदा हो जाना है.
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आंसू के धार से मिल कर निकल पड़ी एक और धारा जो धरा को क्षितिज से जोड़ देगी...!
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6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कम अवधि हेतु होता है यहाँ आना... मिलजुल लेना चाहिए समय रहते सब अपनों से... बना लेना चाहिए अपना सभी बेगानों को... जाने से पहले इतना तो कर ही लेना चाहिए: शेष कुछ भी नहीं रह जाता.

    सच है

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  2. देखो, कहीं जीवन और मृत्यु किसी अनजान क्षितिज पर एकाकार तो नहीं हो गए?

    बहुत खूब...
    इस नये ब्लॉग में क्या गद्य लिखेंगी???
    शुभकामनाएँ..

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  3. मृत्यु की अनिवार्यता जीवन का ही एक पहलू है, तभी तो श्मशान से लौटते हुए भी जीवन की किलकारियां झूठी नहीं लगतीं... देखो, कहीं जीवन और मृत्यु किसी अनजान क्षितिज पर एकाकार तो नहीं हो गए?

    गहन चिंतन का निचोड़ हैं आपके विचार अनुपमा जी ! अच्छा लगा पढ़ कर !

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  4. शब्द एक मात्र माध्यम हैं अभिव्यक्ति के पर यह माध्यम कभी कभी बहुत अपर्याप्त भी होता है, है न?
    बहुत सच कहा आपने अनुपमाजी, इसीलिए तो कहते हैं,'The deepest thoughts are better left unexpressed'!....कभी कभी शब्दों में बाँधने से 'भावनाएं ' गौण हो जाती हैं

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